रुद्र हूँ, जहर पीकर भी मुस्कुराया हूँ,
फिर क्यों मधु की कामना करूँगा?
जब दे चुका अस्थियाँ इन्द्र के लिए,
जब विष का पात्र पी गया बिना शिकन,
तो विध्वंस की कल्पना भी क्यों करूँगा?
है सामर्थ्य मुझमें असीम, तो याचना क्यों करूँगा?
देह को जलाया है, राख में सपने बोए हैं,
हर झोंपड़ी को उजाले से भरकर,
अट्टालिकाओं को झुकाया है।
दीपक हूँ, तिमिर से संघर्ष है मेरा,
तो अंधकार से समझौता क्यों करूँगा?
है सामर्थ्य मुझमें असीम, तो याचना क्यों करूँगा?
मेरे द्वार खुले हैं हर पीड़ित के लिए,
साँपों को भी दूध दिया है इस आँगन ने।
जीतकर शत्रु को, दया का वरदान दिया,
तो अपने घर में द्वेष क्यों भरूँगा?
है सामर्थ्य मुझमें असीम, तो याचना क्यों करूँगा?
ठोकर मार दी ऐश्वर्य को,
भिखारी बना, पर स्वाभिमान नहीं खोया।
फिर भी क्यों तुम्हारी आँखों में जलन है?
जब हृदय पर राज्य कर चुका,
तो क्षणिक सिंहासनों की ख्वाहिश क्यों करूँगा?
है सामर्थ्य मुझमें असीम, तो याचना क्यों करूँगा?
मैं वो चिंगारी हूँ, जो राख में भी जिंदा रहती है,
मैं वो तूफ़ान हूँ, जो रास्ते खुद बनाता है।
जहर पीने वाला रुद्र हूँ,
मधु की याचना मेरी फितरत नहीं।
है सामर्थ्य मुझमें असीम, तो याचना क्यों करूँगा? - ©️ जतिन त्यागी