बदलते समय अपेक्षित रिश्तों की स्थिति।
मेरी रिश्तों की पोटली
यूं ही अचानक आज
हाथ से छूटकर
मेरे ही सामने खुल कर
गिर पड़ी रिश्तों की पोटली।
हड़बड़ी में लगी जब समेटने तो
उलझे-उलझे से लगे रिश्ते मुझे
कुछ सूखे-सूखे कुछ रूखे-रूखे से
कुछ सूखे पत्तों से दरकते
कुछ सिक्कों की खनक में अकडते
कुछ रिश्ते नितांत अकेले से
रिश्तों की गांठ को जस की तस झेलें
कुछ मुरझाए से रिश्तों को दरकार थी मुस्कान की फुहारों की
कुछ पोपले मुख अनुभव के
भार से समृद्ध बिल्कुल अकेले
तक रहे थे कि, कोई बांह आगे आए
आऔर थाम ले, चाहत से प्यार से,
तरोताज़ा करने की चाह में
कुछ रिश्तों को थपथपाया ,
किसी को बस सहलाया,
और ख़ुद को गुदगुदाया।
बस खिल उठे सारे रिश्ते
जो थे उलझे-उलझे से,
एक दूजे में गूंथे-गूंथे से,
प्रेम की चाशनी में पगे से,
प्रेम विश्वास से सहेज कर
रिश्तो की पोटली
मैं चल पड़ी निर्जन पथ पर
भरी-भरी आस-विश्वास लिए
नितांत अकेली।
प्रभा पारीक