*वो बनारस की दिवाली*
बनारस की गलियों में, रोशनी का जादू छाया,
दीपों की चमक देखो, हर दिल में है समाया।
गंगा की लहरों पर, दीप जलते नन्हे से,
सपनों की रौशनी में, खो गए सब रंगीन सपने से।
बच्चों की हंसी में, गूंजती है खुशियां,
फुलझड़ियों की आवाज़ में, छुपी है जिंदगियां।
हर घर में उत्सव सा छाया, हर दिल में उमंग बसाया,
बनारस की गलियों में, छा गया है रंग।
रंग-बिरंगी रंगोली, हर घर पर है सजी,
मिठाइयों की खुशबू, हर मन को भा गई।
बाज़ारों की रौनक में, चहल-पहल का आलम,
दीपों की इस महक में, बसी है बनारस की धड़कन।
नदियों के किनारे, दीयों की कतारे,
संगीत और नृत्य में, झूमता है संसार।
बनारस की गलियों में, दिवाली का जश्न,
हर दिल में बसी है, प्रेम की एक धुन।
आओ मिलकर मनाएं, ये प्यार का त्यौहार,
बनारस की गलियों में, बहे सुख-शांति का त्यौहार।
दीप जलाकर सजीव करें, हर ख़्वाब को साकार,
बनारस की दिवाली, है सबके लिए प्यार।
~Shweta Pandey