हरे तमस दीपावली, *आलोकित* घर-द्वार।
सुख-वैभव सबको मिले, हटें दुखों के भार।।
पाँच सदी पश्चात यह, आनंदित त्यौहार।
सजी अयोध्या आज फिर, बिखरा है *उजियार*।।
सुख-*समृद्धि* की आस में, करता मानव कर्म।
दुखियों के हर कष्ट को, हरता अपना धर्म।।
चारों दिशा *प्रदीप्त* हैं, खुशियाँ अपरंपार।
दीप-पर्व रोशन हुआ, झूम उठा संसार।।
*ज्योतिर्मय* साकेत-पुर, छटी अमा की रात।
राम-भरत का प्रिय मिलन, भातृ-प्रेम सौगात।
मनोजकुमार शुक्ल मनोज