स्त्री,,,,एक शक्ति
क्या क्या लिखूं मैं स्त्री पर,,
यह तो हर रिश्ते की नींव है।
सब रिश्तों को चले समेटकर,,
इसका आंचल इतना असीम हैं।
जिस घर में स्त्री का साया है,,
वो तो सबसे खुशनसीब हैं।
खुद को ही भुला देती,,
पर बदले में ना ज्यादा कुछ चाहती है।
अपने हर बलिदान बदलें,,
थोड़ा सा प्यार और,,
थोड़ा सा सम्मान ही तो चाहती है।
यह स्त्री ही तो है,,
जो ईंट पत्थर के मकान को घर बनाती हैं।
बच्चों से लेकर बड़ों तक ,,
हर रिश्ता जी जान से निभाती हैं।
जरूरत पड़े अगर कभी जिंदगी में,,
घर का मर्द भी बन जाती हैं।
कितना भी कर लें हम औरतें,,
कुछ ना कुछ तो रह जाता हैं।
ऐसा भी क्या करती हो,,,
एक दिन अपनों से ही सुनना पड जाता हैं।
कैसे बताऊं उस दर्द को,
जो अपनों का छोटा सा ताना दें जाता हैं।
चलो इस सवाल का ,,
आज ज़वाब में देती हूं।
सुनना सब ही गौर से,,
अब जो में कहतीं हूं।
तुम कहते हो ना के,,,,,,,,,,
दिन भर में ऐसा क्या करती हूं,
जो थके रहने की शिकायत करती हूं।
तो सूनों,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
दिन भर में भागती हूं,,
ता कि आप आराम से रह सको,,
करने को तो इतना करती हूं बस ,,,
के आप इस मकान को घर कह सकों।
✍️✍️✍️✍️ परमजीत 💚🌹💚