Hindi Quote in Poem by Dr. Suryapal Singh

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सपने बुनते हुए

कभी सुना था उसने
सपने मर जाने से
मर जाता है समाज
आज सपने बुनते हुए
भावी समाज के
वह बुदबुदाया
'चोर को चोर कहना ही
काफी नहीं है'
दो बार और फुसफुसाकर कहा
पर तीसरी बार उसने हाँक लगा दी
'चोर को चोर कहना ही काफी नहीं है।'
तभी एक व्यक्ति दौड़कर आया
'क्या कहोगे मित्र?
किसी चोर को क्या कहोगे ?
सांसद विधायक अधिकारी
या और कुछ।"
'कौन हो तुम ?'
उसी रौ में वह गरज उठा
'गरजो नहीं, मैं एक चोर हूँ
मुझे क्या कहोगे?
चोर को चोर कहना
सचमुच उसका अपमान करना है।'
उस ने सुना या नहीं
पर चौथी हाँक लगा दी
गिर पड़ा लड़खड़ाकर
अविष्ट-सा छा गई बेहोशी।
चोर को लगा कि यह आदमी
चोरों का हितैषी है
उसने उसे उठाया
नर्सिंग होम में भरती कराया
दो घण्टे बाद
उसने आँखें खोली
चोर ने ईश्वर को धन्यवाद दिया
बोल पड़ा 'कुछ सोचा है
चोर को क्या कहोगे?
उसके लिए गोष्ठियाँ-भोज
जो भी करोगे
व्यय की चिन्ता न करना
मैं वहन करूँगा।
देखो मौके पर तुम्हारे
मैं ही काम आया।
तुम्हारे ईमानदार साथी
घरों में दुबके होंगे
कहाँ निकलते हैं
ईमानदार लोग
घरों से बाहर?
तुम ठीक कहते हो
चोरों को भी गरिमा के साथ
जीने का हक है
बड़ी चोरियाँ करके भी
संभ्रान्त लोग
सम्मानित ही रहते हैं
हम छोटे चोर हैं
सम्मान की ज़रूरत
हमें ही सबसे ज्यादा है।
तुम्हारे कथन से
मैं भी उत्साहित हुआ हूँ
सच है नहीं कहना चाहिए
चोर को चोर
हम पूरी मदद करेंगे
तुम्हारे अभियान में।'
शब्दों के अर्थ की
अलग दिशाएँ देख
सोच में खो गया वह
'ओ अर्थछवियो !
कहाँ है तुम्हारा वास
मेरे या चोर के मन में?
ऐसा क्या है जो
कर देता है भिन्न
मेरे अर्थ को उससे?
क्या सचमुच अर्थ
संदेश में नहीं होता?
सपने जन-जन के
क्या बिखरते हैं इसी तरह
अर्थों के जंगल में?'
उसको चिन्ता मग्न देख
चोर ने मुस्कराकर कहा
'चिन्ता छोड़ो
आपके अभियान का
दायित्व मेरा है
सारी चिन्ताएँ मेरे ऊपर छोड़
निश्चिन्त हो जाओ
बस छोटे चोरों को
गरिमा दिलाओ।'

Hindi Poem by Dr. Suryapal Singh : 111941127
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