जीवन की परेशानीयों और कठनाइयों में,
दिल को बहलाना भी कोई किसे सिखाता है।
कोई गर्दिशों की जद से रों पड़ता है आखिर ,
कोई खेल समझकर कुछ भी कर गुजर जाता है।
किसी को न्याय नहीं मिलेगा पैसा तख़्त जुखाता है,
अंदा है कानून कोई गीता की झूठी कसमें खाता है।
कोई देख ज़माने की बंदिशों को वहसत में आ गया,
अब तो जों जी में आता है वो ही कर जाता है।
जीस्त के कुचों में जुल्मत तो कभी रोशन चलता है ,
जुल्मत के वक्त अगियार क्या मूसाफत बदल जाता है ।
जीवन की परेशानीयों और कठनाइयों में,
दिल को बहलाना भी कोई किसे सिखाता है।
पवन कुमार सैनी