#जीवन के बिखरे ताने -बाने में,
हँसने और रोने के फ़साने में,
समय कैसे गुज़रता जाता है,
महीने,सालों के आने जाने में।
कितने रिश्ते बिछड़ते ,टूटते
होते थे अपने ,जुड़ते अन्जाने में।
हमने जिनको प्रेम से सींचा था ,
उन्हें परवाह नहीं पास आने में।
अब तो अकेले ही बसर करूं मैं,
बुनकर करखे के चलते जाने में ।
डाॅ अमृता शुक्ला