कमी शायद मुझमें ही रही जो
हर किसी को शरीफ़ समझता रहा
वे क़ब्र खोदते रहे मेरी
और आवाज उन्हें मैं देता रहा
दिल जानता था कि नादान है तू
फिर से धोखा खाएगा
मौका सा बस मिलते ही
तू पहले मारा जाएगा
अनसुना मुझे वो करते थे
हर बात में ना जाने क्यों
आवाज फिर भी निकलती थी
दिल का हाल समझाने को