कैसा जहां खुदा है तेरा?
जहां ना प्रेम ना ही कोई नाता है,
पुरुष की पूरक होने पर भी,
स्त्री के स्वाभिमान को पग-पग छला जाता है।
कर्म किसी के, झेले कोई,
ये न्याय कहां कहलाता है?
मर्यादा पुरूषोत्तम राम ही थे,
अब मर्यादा का नाम कहां..
सीता की इच्छा रखने वाले,
रावणों का है राज यहां।
एक केवल नारी होने का,
दंड नारी को दिया जाता है।
अपनी बेटी संपन्न है दिखती,
दूजे जी तुम्हें ना भाती है,
क्यूँ जोड़ते हो बंधन फिर,
जब बस ऐसे कड़वे वचन सुनाना आता है।
अपनी के तो अवगुण भी गुन है,
दूजी के गुणों के लिए मनुष्य अंधा हो जाता है।
नारी केवल लक्ष्मी नहीं,
वह दुर्गा भी बन जाती है,
जैसा तुम व्यवहार करोगे,
वैसा ही रूप वह पाती है।
सीमाएं निर्धारित है कर्म की,
मानव क्यों समझ नहीं पाता है,
कैसा जहां खुदा है तेरा,
जहां ना प्रेम ना ही कोई नाता है।😢😢😔😔
-Ambalika Sharma(zindagi)