*!!!!!!!!!ओ३म् !!!!!!!!!*
*"संसार में कोई भी व्यक्ति अकेला नहीं जी सकता। क्योंकि मनुष्य अल्पशक्तिमान है। उसे सुखपूर्वक जीवन जीने के लिए लाखों करोड़ों मनुष्यों की सहायता लेनी पड़ती है।"*
*संसार में दो प्रकार के व्यक्ति मिलते हैं। एक - अधिक बुद्धि वाले, और दूसरे - कम बुद्धि वाले।*
*"यदि किसी की बुद्धि अधिक भी हो, और पवित्र भी हो, फिर तो बात ही क्या है!"*
*परन्तु ऐसे लोग बहुत कम मिलते हैं, जिनकी बुद्धि अधिक भी हो और अच्छी भी हो। अर्थात वे संस्कारवान भी हों।*
*"यदि किसी व्यक्ति को जीवन में ऐसे लोग मिल जाएं, जो अधिक बुद्धि वाले भी हों, और वे बुद्धि का सदुपयोग भी करते हों, तो वह बहुत सौभाग्यशाली होगा।" "ऐसे बुद्धिमान संस्कारी व्यक्तियों की संगति में रहने से उस व्यक्ति की बुद्धि भी बढ़ेगी और अच्छे काम करने से उसके जीवन में आनंद भी होगा।"*
*"उसके जीवन में सेवा परोपकार दान दया आदि उत्तम गुण कर्म होंगे, जिससे वह व्यक्ति सुख से अपना जीवन जिएगा।"*
*"दूसरे लोग, जो कम बुद्धि वाले हैं अथवा बुद्धि अधिक होने पर भी उनके संस्कार अच्छे नहीं हैं, जो बुद्धि आदि साधनों का दुरुपयोग करते हैं, ऐसे लोग स्वयं तो दुखी रहते ही हैं, साथ ही साथ वे दूसरों को भी दुख देते हैं।" "यदि जीवन में आपको ऐसे लोग मिलते हों, तो उनसे बचकर रहें, उनसे दूर रहें। अन्यथा वे आपका जीवन भी बिगाड़ देंगे। आपको भी अनेक आपत्तियों में फंसा देंगे।"*
इसलिए अच्छा यही है, कि *"प्रमाण और तर्क से प्रत्येक व्यक्ति का परीक्षण करते रहें। जो अच्छा बुद्धिमान संस्कारी व्यक्ति मिले, उसी के साथ मित्रता बनाएं, और उसी के साथ रहकर जीवन जीएं। मूर्ख एवं दुष्ट लोगों से तो दूर रहना ही अच्छा है।"*
----- *"स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक दर्शन योग महाविद्यालय रोजड़, गुजरात।"*