सिसकियाँ
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उसकी सिसकियों में भी शोर था,
शोर एक.. सन्नाटे का,
नज़रों के पार न कोई छोर था,
छोर ना किसी उम्मीद का,
अजनबी सा वो शहर था,
शहर की भीड़ में वो अकेला सा,
हर रस्ता कुछ तनहा था,
तनहाइयों में वो तनहा सा,
रहा संग.. बस यादों का तूफ़ान था,
समंदर की लहरों का.. गरम कुछ मिज़ाज था,
बिताने को वक़्त तो अब बेतहाशा है,
पर पास उसके अब.. वो हमराज़ ना था।
©️अनूप