मनुहार
जब भी आऊं मैं तुम्हारी उस गली
तुम दूर से ही सिर्फ एक बार मुस्कुरा देना
जब भी डालूं एक निगाह तुम्हारी निगाहों में
तुम एक बार अपनी निगाहों में मुझे बसा लेना
जब भी करूं मैं बात जाने की दूर तुमसे
तुम पकड़ कर हाथ मेरे पास अपने बिठा लेना
रूठने का जब भी हो दिल तुम्हारा
रूठने से पहले मनाने का तरीका समझा देना
ये जिन्दगी तो है कुछ वर्षों की कहानी
तुम जन्मों का बन्धन मुझसे लिखवा लेना ।
सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा
साहिबाबाद ।