बात अपनों से होती है
पर अपनी सी नहीं होती ,
आता है समय हर बार नए साल के रूप में
पर होता नहीं है उसमें नया कुछ ।
नए की तलाश में
दूंढता रहा हूं मैं उन अपनों को हर साल
कि शायद मिलेंगे वे इस बार
जिनसे बात होगी
और अपनी सी होगी ।
न जाने क्यों लगता है मुझे कि
ढूंढ ही लूंगा इस बार उसे निश्चय ही
क्योंकि करूंगा ढेर सारी बातें खुद के मौन सेवे बातें जो अपनी भी होंगी
और अपनों से भी होंगी ।
सुरेंद्र कुमार अरोड़ा
साहिबाबाद ।