दिल की व्यथा को वो कह रहा है
तेरे कपोलों पर जो यूं बह रहा है
एक अश्रुकण दृग से बह गया था
तेरी सम्पूर्ण व्यथा को कह गया था
खोया विश्वास है और हैं सूनी आंखें
काटे नही कटती अब ये यौवन रातें
सांवली सलोनी बैठी मधुरस धार लिए
आकुलता , व्याकुलता और अश्रुधार लिए
फूल खिले देह मे परमनमयूर न नाच रहा
पपीहा कूक कूक देखो प्रेम राग बांच रहा ।
- योगेश कानवा