Hindi Quote in Poem by Yogesh Kanava

Poem quotes are very popular on BitesApp with millions of authors writing small inspirational quotes in Hindi daily and inspiring the readers, you can start writing today and fulfill your life of becoming the quotes writer or poem writer.

आज वही यमुना वही नीर वही तीर

वहीँ बैठी थी वो लिए अपने हिये धीर !

दुग्ध धार ज्यों बह रहा था निर्मल नीर

कोमल देह सुरभित श्यामवर्ण शरीर !

फैली वन उपवन मादकता मधुमास की

सब थे मृग खग सब थे और थी वासवी !

आम्रवल्लियों से महक रहा था उपवन

इधर योजनगंधा बैठी लिए चितवन !

उफनती लहरियों का वह संगीत मधुमय

इधर उफन रहा था यौवन वासवी युववय !

यमुना लहरें भी उछाल उछाल देख रही थी

फेन अपना उसके तन पर फेंक रही थी !

भीगी पिण्डलिया भीगा वक्ष यौवन सारा

मदमस्त था वह यमुना का भी किनारा !

देख यौवन अनावृत उसका कोयल कूक रही

धधकती यौवन ज्वाला में जैसे घी फेंक रही !

देवलोक इंद्रलोक और यमलोक रहे सब देख

इधर कामदेव ने भी अपने सब शस्त्र दिए फेंक !

यक्ष गंधर्व किन्नर मानव सब बेसुध हो जाएँ

लगी होड़ सब में पलभर को रूप वो पा जाएँ !

ऊषा ज्योत्स्ना सा था कितना यौवन स्मित

भूल अपनी ही कस्तूरी गंध मृग कितना विस्मित !

कुसमित कुञ्ज में पुलकित पुष्प अलि प्रेमालिंगन

मधुकर भी मकरंद उत्सव में हुआ देखो संलग्न

मृग भी पहुँच गए गन्धाकर्षण में खिंचे हुए

मंद मुस्कान लिए अधर मधुरस सिंचे हुए !

सुरभित शीतल समीर बह रही थी मंद मंद

योजन दूर भी उपस्थिति कह रही थी वह गंध !

हाँ वही थी वह गंधवती मत्स्यगंधा गंधकाली

अधरों पर लिए बैठी थी जो मधुरस की प्याली !

चन्दन वन में जूही चमेली जैसे थी वो वसवी

किन्तु व्याकुल मन नहीं कोई तनिक पास भी !

कोमल बांहे फैला जैसे आलिंगन जादू जगाया

मन चितवन से व्याकुलता आलस को भगाया !

अब वो चंचल हिरणी सी तक रही चंहु ओर

जाग उठा था यौवन प्रलय अब घनघोर !

जो कस्तूरी गंध से महक रहा तन महका महका

निर्लज्ज हवा का झोंका भी यूँ डोले बहका बहका !

इधर योजनगंधा बैठी थी अपने ही ख्यालों में

उधर उलझ रह था मन शांतनु का सवालों में !

सारथी खींचो लगाम तुरंग की यहीं पर

उतरा नीचे , रखे पाँव उसने मही पर !

बोला कैसी विचित्र है यहाँ की यह माया

किसने कस्तूरी गंध से उपवन महकाया !

अमात्यवार ठहरो यहीं मैं अभी आता हूँ

खोजने यह गंध स्रोत , मैं अब जाता हूँ !

खिंचा चला गया बह रही नीर यमुना धार

ज्ञात न हुआ तनिक आ गया था योजन पार !

यहाँ यह अश्व कैसे हिनहिनाया है

लगता है अजनबी कोई यहाँ आया है !

मंत्रमुग्ध सा एक राजपुरुष वहाँ खड़ा था

राजसी परिधान शीश मुकुट हीरों जड़ा था !

देख अजनबी को हाथों से वक्ष छुपाया

वो मंद मुस्काया और शांतनु नाम बताया !

कौन हो देवी ? तुम किस घर जाई हो

अप्सरी कोई देवलोक छोड़ इधर आई हो !

हे राजपुरुष मैं निषाथ कन्या नौका चलाती हूँ

तनिक ठहरो मैं अपनी पतवार लिए आती हूँ

सकुचाई मृगनयनी वो चली कुलांचे भरती

देख रहा था ये गगन , देख रही थी धरती !

आई वो गजगामिनी सी लिए हाथ पतवार

बिठा राजन को , नाव ले चली मझधार !!

Hindi Poem by Yogesh Kanava : 111909293
New bites

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now