*तो क्या हुआ*!
नाजुक शीशें सा ख्वाब था मेरा, फुट गया तो क्या हुआ!
धागा था मेरी ख़्वाहिश का, हाथ से छूट गया तो क्या हुआ?
कोई कसर कोई कमी बाकी न रखी मैने कभी भी,
फिर भी प्यारा सा कोई रिश्ता, रुठ गया तो क्या हुआ।
किस्मत तेरा लिखा कुछ भी, खाली कहां जाता है कभी?
जो मेरा था ही नहीं वो आशियाना, तूट गया तो क्या हुआ!
सांसे अब भी चल रही है, देखो मै अब भी जी रही हुं!
अरमानों का दम भीतर ही भीतर, घूट गया तो क्या हुआ।
कृष्ण तेरी प्रीत का रंग, सदैव रहेगा मीरां के संग।
ज़माना आके गर मेरा सबकुछ लूट गया तो क्या हुआ।
जागृति, 'मीरां'..
જાગૃતિ, ઝંખના મીરાં*'...