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જાગૃતિ  ઝંખના 'મીરાં'..

જાગૃતિ ઝંખના 'મીરાં'.. Matrubharti Verified

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આજથી શરૂ કરેલી મારી નવી નવલકથા શોધ પ્રતિશોધ..ભાગ ૧ આપ સૌનાં પ્રતિભાવની ઝંખના રહેશે.

*तो क्या हुआ*!


नाजुक शीशें सा ख्वाब था मेरा, फुट गया तो क्या हुआ!

धागा था मेरी ख़्वाहिश का, हाथ से छूट गया तो क्या हुआ?


कोई कसर कोई कमी बाकी न रखी मैने कभी भी,

फिर भी प्यारा सा कोई रिश्ता, रुठ गया तो क्या हुआ।


किस्मत तेरा लिखा कुछ भी, खाली कहां जाता है कभी?

जो मेरा था ही नहीं वो आशियाना, तूट गया तो क्या हुआ!


सांसे अब भी चल रही है, देखो मै अब भी जी रही हुं!

अरमानों का दम भीतर ही भीतर, घूट गया तो क्या हुआ।


कृष्ण तेरी प्रीत का रंग, सदैव रहेगा मीरां के संग।

ज़माना आके गर मेरा सबकुछ लूट गया तो क्या हुआ।

जागृति, 'मीरां'..

જાગૃતિ, ઝંખના મીરાં*'...

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चूप रहें जहां वहां, बोलना जरूरी था।
कड़वे सच को कर उजागर, खोलना जरूरी था।

ऐसा क्या कि पूरा जीवन,देते रहे इम्तिहान,
सम्मान किसीको देने से पहले, तोलना जरूरी था!

रूखा रवैया, रूखी भावना, क्यों झेले हम ही?
एहसास के अल्फाज़ो को थोड़ा, टटोलना ज़रूरी था।

नशा एसे कैसे हो जाए सिर्फ पीकर जाम को?
दोस्त मेरी मृग तृष्णा को जरा, घोलना जरूरी था!


कौन मानेगा भला कि मैं नशे में लिखती हूं!
थोड़ी सी 'मीरां' कलम का मचलना, डोलना जरूरी था!

©️ जागृति मीरां 'मीरां'...

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लो, चलो मान लिया, तुम सही मै गलत,
लो, मै हारी तुम जीते, अब तलक।

बोलना अब कुछ नही, चुप्पी ही ठीक है,
मै नीचे ज़मी पर ही सही, तुम घूमो पूरा खलक!

देख लो, हसीन हसीं, जो है चेहरे पर चिपकी,
आंखो से भी कह दिया है, मत जाना छलक।

हौसलाअफजाई अब मै खुद ही कर लेती हुं,
तेरे न होने की खल रही है कमी, हो रही है कसक!

जज्बात कोई अब कभी कहीं, न आयेंगे नजर,
मीरां की ऐ चाहत, न बनना तुम बेगैरत!

જાગૃતિ, 'ઝંખના મીરાં'..

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અધૂરા બીજના ચાંદનો પણ નિજી રુઆબ છે!

અધૂરી 'ઝંખના' સાથે પણ 'મીરાં' લાજવાબ છે!

જાગૃતિ, 'ઝંખના મીરાં'..

બોલો, તમે કોઈ સ્નેહમાં ખુદને કદી ખોયાં છે?

બોલો, તમે કોઈને ઈશ્વર સમકક્ષ જોયાં છે?


આમ તમે ખૂબ ચતુર-સુજાણ ગણાતાં હોવ ને,

બોલો, અકારણ કોઈ પર મનના ભાવો મોહ્યાં છે?


હા, ચોક્કસ! નિર્ભેળ, નિશ્ચ્છલ પ્રેમ ગુનો હોતો હશે!

બોલો તમે એ અપરાધભાવને આંસુથી ધોયાં છે?


વિરહ 'ઝંખના' પહોચી જાય, પરાકાષ્ઠાએ તે પછી,

મંદિરે માથું ટેકવી 'મીરાં', નયન તમારા રોયાં છે?..

જાગૃતિ 'ઝંખના મીરાં'..

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જે લાગણી મારા દિલે તે એના દિલે નથી!
શું લખું હું શાયરી, જો એ ઝંખનાની મહેફિલે નથી!

જાગૃતિ, 'ઝંખના મીરાં'..