Hindi Quote in Poem by PURNIMA JOSHI

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कान्हा की पुकार
हरी-भरी बगिया के,
फूलों पत्तों कलियों में,
राह में सजे देवदारों में,
मैं कब से तुमको ढूंढ रहा हूं।
झर झर झरते झरनों में,
कब से तुमको ढूंढ रहा मैं,
पथरीली चट्टानों नुकीले पत्थरों में,
कब से राह तुम्हारी तक रहा मैं।
कल कल रहती नदिया के स्वर में,
चल चल कहते लहरों के अंचल में,
सांसे तुम्हारी खोज रहा मैं,
कब से मैं कान्हा तुम्हें ढूंढ रहा मैं।
अलकों में सटे तेरे कानों में,
अद्भुत बंसी की तान सुना रहा ,
तुम्हारे मन की सीपीके भीतर,
अपने प्यार का मोती ढूंढ रहा मैं। तुम मीरा में राधा को खोज रहा मैं,
राधा में तुमसे मीरा को पा रहा मैं,
कौन हो तुम ना राधा ना मीरा,
फिर तुमको वृंदावन की गलियों में क्यों पुकार रहा मैं।
उन्मुक्त बादलों के जहां में,
चमकती दामिनी की झंकार में,
तेरी एक झलक पाने को मैं,
कितनी सुरभियो को महका रहा मैं।
कभी ब्रह्म मुहूर्त में जाग कर देखूं,
शाम सवेरे हर गली के फेरे कर जाऊं,
द्वार सारे खटखटा कर मैं प्रिया,
तुझको हरिद्वार ढूंढ आऊं मैं।
छम छम गिरती बारिश की बूंदों में,
कभी इंद्रधनुषी चुनरिया की ओट में,
तेरी किसी कविता के उपनाम में ,
मैं कान्हा तेरी प्रतीक्षा में तरस रहा हूं।
रोती बिलखती हर सुंदरी में,
अपनी दी मुंदरी ढूंढ रहा मैं,
तेरे घर के भीतर बाहर मौजूद मैं,
कब से चुपचाप खड़ा पहरा दे रहा हूं मैं।
बरखा की इसे रतिया में,
भीगे चेहरे से भीगे तेरे तकिए में,
तेरे सपनों में मधु मुस्कान ढूंढ रहा मैं,
हर युग में नाम अलग हो पर तुझको ही पुकार रहा मैं।
डा.पूर्णिमा श्रीधर जोशी*पुनमसरल*

Hindi Poem by PURNIMA JOSHI : 111882331
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