धीरे धीरे ही सही अब सब समझ आरहा हैं
दूसरों के लिए जी रहे हम
अपने लिए क्या रखा हैं 🙁
सारे सपनो को संजोह कर
एक बक्से में दबा रखा हैं
कहना किससे , करना कैसे
किस्मत ने भी अपने रास्तों को
छुपा रक्खा हैं
होसलो की कमी नहीं , पंख फेला के उड़ जाऊ
फिर नजर घूमऊ पीछे अगर में तो
मज़बूरीयो ने भी बांध रखा हैं
करना क्या समझ से परे हैं मेरे
उलझनों ने भी गोटा बना रखा हैं
रौशनी की कोई किरण नजर नहीं आरही हैं मुझे
हमने अंधेरे को ही अपना बना रक्खा हैं
नजाने किस पत्थर से टकराए हम
और वही सुमसाम मर जाना हैं 😕