पत्तों के मंच पर,
बैठी ये मासूम शब़नम
करना चाह रही हैं नृत्य,
चाह रही झूमना,
पवन की थाप पर..
नहीं जानती शायद कि आकर
मार्तण्ड, मिटा देगा
इसके अस्तित्व को..
और
यह सौंदर्य इनका वाष्पित हो ,
लुप्त हो जाएगा ब्रह्माण्ड में.
पाने को फिर एक नया जन्म..🐣
विचित्र है यह प्रकृति🌿🍃
फिर यह रूप दिखे ना दिखे..
कर लो आत्मसात इस सौंदर्य को अभी .
जी लो जी भर बस तुम भी वर्तमान में ही
है क्षण भंगुर इसी भाँति मानव जीवन भी.
----मंजु महिमा