"अहसास"
एक छोटे ख़्वाब के लिए
भटकती रही
न जाने कितने वर्षों तक
कभी घबराहट में उकता गई
कभी तन्हाई में
खुद से बातें करती रही
कभी आंसू भी बह आये
शब्द बनकर
तो कभी आंखों से खुशियों की
बरसात भी हुई
कभी पूर्व से निकले चांद ने भी चिढ़ाया
पर कभी समझा न सकी
मैं अपने दिल को ही
सपने आखिर सपने होते हैं
जो बंद आंखों में ही समाते हैं
और आंख खुलते ही बचता है
सिर्फ अहसास....
#priyavachhani