क्यों तुम भी खुश नही और में भी?
अब क्यों तुम मेरे लिए ठीक नही, और मैं तुम्हारे लिए?
क्यों अब हम ने करनी बस मजदूरी है?
क्या यही हमारी मजबूरी है?
क्यों ना तुजमे कोई जिंदगी बची, और ना कोई काबेलियत मुझमें?
क्यों ना अब तुझे मेरी इच्छाओं की कोई फिक्र है,
और नाही मुझे तेरी नाराजगी का कोई गम?
ये ज़िंदगी के कोनसे मोड़ पे आगए है हम?
जहां हम से बन रहे हैं वापस
*तू*
और
*मैं*।
-Akshay Jani