हाल के राजनीतिक हालातों के संदर्भ में मीडिया की भूमिका पर एक निष्पक्ष नजरिया इस मुक्तक के द्वारा प्रस्तुत है।
जनता की आवाज होने का दावा करनेवाले पत्रकार जब सरकारी भोंपू बन जाते हैं, तब उन्हें देश में बढ़ती महँगाई, गरीबी, अपराध और भ्रष्टाचार नजर नहीं आता, तब लिखना पड़ता है ऐसा मुक्तक !
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जब जब कलम हुई सरकारी, जेब कटी है जनता की
महँगाई और जुल्म बढ़ा है, फूटी किस्मत जनता की
देशप्रेम का करें ढोंग ये, धर्म की गोली देते हैं
पछतायेंगे, हाथ मलेंगे, जो नींद ना टूटी जनता की