#Ramaपिता के वचन को निभाने चले हैं।
वचन की महत्ता बताने चले हैं।
राम -सिया संग लखन भ्रात है,
न कोई प्रश्न है , न कोई बात है।
टेढे रास्ते और नदी- जंगल कहीं
किसी को इसकी परवाह नहीं।
पीछे-पीछे पग को बढ़ाते चले हैं
कोमल मुख,सुकोमल गात है,
धनुष बाण थामें हुए हाथ हैं
पांव में पादुका भी न पहने,
साधु के वस्त्र, फूलों के गहने।
कठिनाई में मुस्कुराते चलें हैं
।
भरत भी अति दुख से भरे हैं।
माता के प्रति रोष ही कर रहें हैं।
इस सब की वजह है मंथरा दासी,
जिससे अयोध्या में छायी है उदासी।
चरण पादुकाएं लाने चले हैं,
प्रभु को मनाने चले हैं।
डॉअमृता शुक्ला