राम
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तुम याद बहुत आते हो राम
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रामराज्य की माया रचकर
जड़ चेतन के हिय में बसकर
ऊँच नीच का भेद मिटाकर
निर्बल दीनों को अपनाकर
प्रतिपल करते अद्भुत काम
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तुम याद बहुत आते हो राम
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अपनी बड़ी बड़ाई छिपाकर
मृदुल मधुर मुस्कान दिखाकर
सभी जीव का चित्त चुराकर
जड़ चेतन को अपना बनाकर
जाने कौन गए तुम धाम
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तुम याद बहुत आते हो राम
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मात - पिता के आज्ञाकारी
भ्राताओं पर तुम बलिहारी
गुरुजन वृंद के तुम आभारी
प्रजा जनों के तुम हितकारी
नित नवीन गढ़ते आयाम
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तुम याद बहुत आते हो राम
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अब तो बस हर ओर दिखावा
एक - दूजे संग मात्र छलावा
बिन भूडोल निकलता लावा
बिन अधिकार ठोंकते दावा
चतुर्दिक छाया "मैं" का नाम
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तुम याद बहुत आते हो राम
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सुधाकर मिश्र "सरस"