ये लफ्ज़ उलझे लट में
बाली से झूलते
अंगडायिओं में थे टूटे
साँसों में फूलते
पायल में झनकते ये
कंगन में खनकते
बेफिक्र फुरसति में
दुपट्टे संग भटकते
अब
लफ्ज़ अंगीठी में, तेरी राह ताकते
जब तक न राख हों वो, करवटों में जागते
लफ्ज़ ही हैं बाकी, तेरे मेरे दरमियाँ
और आफत है अब ये के
बाकी लफ्ज़ ही नहीं ...
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