थे जिंदा जब तलक, मुकाम ढूंढते रहे।
बेगाने शहर में, नामों-निशां ढूंढते रहे।।
हुआ न हासिल, मरकर भी कुछ मन!..
फिर से.........
जीने को इक जिंदगी!, कयाम ढूंढते रहे।।
#पीड़ा_मन_की
#तृप्ती_अंतस_की
#दर्पणकासच
#योरकोट_दीदी
#योरकोटबाबा
#सनातनी_जितेंद्र मन

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सनातनी_जितेंद्र मन 2 year ago

सादर आभार जी 🙏 😊

SHUBHAM SONI 2 year ago

वाह!! अद्भुत 👏👏

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