बचपन की याद सतावै
सावन की ऋतु आई सखी,बचपन की याद सतावै।
सावन की कजरी और झूले की,प्यारी सुध ललचावै।।
याद आयें बचपन की सखियां,गुड्डे - गुड़ियों के व्याह रचावैं।
वो दिन फिर नहीं आयेंगे , यह सोच अखियाँ भर आवैं।।
पल में कट्टी पल में मिठ्ठी, पर प्रेम नहीं मुरझावै।
कल खेलन जरूर आना सखी , यह कसम लेके घर जावै।।
बचपन बीता आई जवानी, जो सतरंग सपने दिखावै।
सबके बीच अकेलापन लागे, पर दिल मन ही मन गावै।।
व्याह दिया परदेश में बाबुल, परदेशी संग जिया लहरावै।
भूला बचपन भूली सब सखियां, दिन सुख ही सुख के आवै।।
सावन की पहली फुहार में , भीगा बचपन याद आवै।
मन कसके और दिल तड़पे, काश वो बचपन फिर लौट आवै।।
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