मिलन की आस
सावन की शीतल फुहार , तन - मन झुलसाए बार - बार
मन में छायी घनघोर घटा , अंखियाँ बरसायें जल अपार
कितने ही युग अब बीत चुके , कर - कर हारी मैं इंतज़ार
इस सावन अब होगा मिलन , इस आस में तकती रहती द्वार
एक सुबह रात की होती है , इस रात का कोई अंत नहीं
इतनी भी परीक्षा मत लो तुम , क्या मेरा प्यार जीवन्त नहीं
अब आन मिलो तुम हे प्रियवर , मेरी प्रीत न तुम बदनाम करो
प्रीत किए दुख मिलता है , इस चलन पे अब तो विराम धरो
जीत प्रीत की होती है , इस सत्य का अब ऐलान करो
प्रेम है पूजा ईश्वर की , इस सर्वसत्य का मान धरो
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सुधाकर मिश्र "सरस"