इस मंच पर उपस्थित सभी लोंगो को मेरा नमस्कार!
"मुझे कुछ कहना है....."
एक रचनाकार का अपनी रचना के साथ बिल्कुल वैसा ही कोमल, ममता से भरा पवित्र रिश्ता होता है जैसे कि एक माँ का अपनी संतान के साथ। वैसे तो माँ अपनी संतान को स्वयं ही गढ़ती है मगर ये संस्कार, संस्कृति एवं परम्पराएं उसके परम आलोचक होते हैं और अपने इन्हीं आलोचकों की सही आलोचना की बदौलत वह अपनी संतान को हीरे सा गढ़ने में सक्षम हो पाती है। ठीक उसी तरह अगर एक रचनाकार के पास उसके सच्चे आलोचक हों तो वह अपनी रचना को कोहिनूर बनाने में सफल हो पाते हैं।
दोस्तों! मुझे अपनी हर रचना को कोहिनूर बनाना है और इसीलिए मुझे मेरे सच्चे आलोचकों की जरूरत है। अपनी लिखी रचना में स्वयं से गलतियों को ढूँढ पाना जरा मुश्किल होता है क्योंकि हमारी रचना भी तो हमारे अपने ही भावों का एक अंश होती है और अपना अंश हमेशा प्यारा ही लगता है फिर वह चाहे जैसा भी हो, इसीलिए एक आलोचक की तरह आपका मेरी रचना पर स्वागत है।
मालूम नहीं मुझे यह बात लिखनी चाहिए या नहीं बस दिल कह रहा है लिख दूँ। हाल ही में मैंने किसी रचना पर एक समीक्षा पढ़ी थी। समीक्षक ने बड़ी ही ईमानदारी से रचना की तारीफ की और साथ ही रचना की गलतियों को इंगित करते हुए सुधारने की सलाह भी दे दी। वास्तव में कुछ कमियों के साथ रचना बहुत अच्छी थी। समीक्षक के इस ईमानदार आलोचना को लेखक ने स्वस्थ तरीके से ना लेकर उस पर अपनी नाराजगी जताई। मैं लेखक नहीं हूँ मगर थोड़ा बहुत कुछ लिख लेती हूँ। अपने मन के उदगारों को व्यक्त कर लेती हूँ। मेरा सभी से विनम्र अनुरोध है कि अगर उनकी रचना पर कोई सलाह देती समीक्षा आती है तो कृपया उसकी ओर ध्यान दीजिए ना कि नाराज़गी जाहिर कीजिए। मुझे लगता है अगर अपने आलोचकों का मान रक्खा जाए तो अगली रचना की प्रस्तुति सुधारों के साथ हो सकेगी। कृपया इसे मेरा अहंकार मत समझिएगा।
धन्यवाद
नीलिमा कुमार