देश - सेवा
देश की चिंता तुम्हे है,जानकर अच्छा लगा।
एक जागरूक इंसान में,भाव है अच्छा जगा।।
कर्तव्य रत हो देश के प्रति,किंतु पहले यह करो।
अपनों की चिंता करो और,ध्यान भी उनका धरो।।
मधुर हो संबंध,शिकवा और शिकायत ना रहे।
हमसाया,होकर रहें खुश प्रेम की गंगा बहे।।
हम जिएं और जीने दें,औरों को भी अपनी तरह।
खोल कर रख दें सभी,यदि मन में हो कोई गिरह।।
पहले बदलें खुद को,हर अंदाज़ बदल जाएगा।
देश की सेवा का फिर,अलग ही मज़ा आएगा।।
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सुधाकर मिश्र "सरस"