ममता का दर्पण, तुझ में ही है
त्याग और समर्पण, तुझ में ही है
तुझ में ही धारा है करुणा की
वात्सल्य का कण कण, तुझ में ही।
तेरे स्वरूपों के, गुणगान में
हे नारी तेरे, सम्मान मैं
रच के छोटी सी कविता ये
लाया हूं मैं तेरे संज्ञान में।
अंबर भी तू ही, तू ही धरा
तेरा ह्रदय है दया से भरा
गंगा के जैसी, निश्चल है तू
तू ही है लक्ष्मी, तू ही स्वरा।
तू ही प्रकृति, तू ही काली
दृढ़ है तू, तू ही है शक्तिशाली
अधूरा है जग ये, तेरे बिना
तू ही इस जगत को, जनने वाली।
-Satish Malviya