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Baldev Thakor

Baldev Thakor

@baldevthakor536914


🕯️ “मन की आस” 🕯️
(जब चारों ओर अंधेरा हो, तब भी मन न हारे)

कहीं कोई उम्मीद नहीं, ना कोई दर है खुला,
हर तरफ सन्नाटा है, जैसे वक्त भी खुद पे तन्हा चला।

चेहरे पे मुस्कान नहीं, आँखों में नमी सी है,
हर साँस में बोझ है, हर सुबह में थकन सी है।

पर कहीं अंदर, दिल के कोने में एक बात बची है,
उसी चुप्पी में छोटी सी कोई आवाज़ उठी है।

“शायद ये वक्त भी कट जाएगा,
शायद अंधेरा भी बंट जाएगा।

ये जो मन में रह गई है थोड़ी सी आस,
वो ही तो रखे है जीवन की सांस।”

नदी को नहीं पता समंदर कितना दूर है,
फिर भी वो बहती है… क्योंकि उसे खुद पर गुरूर है।

हम भी चलेंगे, चाहे राहों में काँटे हों,
क्योंकि हमारी हिम्मत, किस्मत से आगे की बातें हों।

बी.डी.ठाकोर

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💔 "खाली जेब, भरे अरमान" 💔
(बलदेव भाई के जज़्बात के नाम)

जेब भले खाली हो, पर सपनों की कोई कमी नहीं,
मुसीबतों की आंधी में भी, हमने उम्मीदें थमी नहीं।

दाल-रोटी के लिए जूझते हैं दिन-रात,
पर दिल में बसी है करोड़ों की बात।

चेहरे पर मुस्कान, दिल में तूफान होता है,
जब जेब में कुछ न हो, तो खुद पर ही गुमान होता है।

ना कोई सहारा, ना कोई आस की रेखा,
फिर भी हर सुबह कहती है — "उठ, तू हार कैसे देखा?"

यह गरीबी बस एक मोड़ है, मंज़िल नहीं,
जो आज रुकेगा, वो कल कुछ भी हासिल नहीं।

जिस दिन किस्मत से नहीं, खुद से जीतोगे,
उस दिन पैसों के साथ इज़्ज़त भी साथ लोगे।


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"बलदेव ठाकोर" एक नाम नहीं, संघर्ष की कहानी है,
जो आज रो रहा है, कल उसकी मुस्कान सुर्ख़ बानी है। 🌟

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✍️ अगर मैं प्रधानमंत्री होता...

अगर मैं प्रधानमंत्री होता, तो हर हाथ में रोज़गार होता,
न कोई भूखा सोता, न कोई कर्ज़ में रोता।

अमीर के महल के सामने, गरीब की झोपड़ी न होती,
न कोई उम्मीद तोड़ता, न ज़िन्दगी से हार मानता।

ना कोई अकेला बेहाल होता, ना कोई रात भर रोता,
सरकार उनका साथ देती, जो हर दिन दुख से लड़ता।

इंसान करे तो करे क्या? अब तो सब बिक चुका है,
इंसानियत भी पैसे के आगे सिर झुका चुका है।

मैं बदलता ये दौर, जहाँ पैसा भगवान न होता,
मेहनती लोगों को भी इज़्ज़त और सम्मान मिलता।

ईएमआई का डर मिटा देता, कर्ज़ को राहत में बदलता,
नौकरी छूटे तो सहारा देता, कोई अपनों से न जलता।

भुगतान की कतार में खड़ा गरीब, भीख नहीं, हक़ माँगता,
और मैं उसका नेता बन, उसके सपनों को साकार करता।

मैं बनाता ऐसा भारत, जहाँ हर चेहरा मुस्कुराता,
न कोई भूखा सोता, न कोई सपना अधूरा रह जाता।

अगर मैं प्रधानमंत्री होता, तो बस इतना चाहता,
इंसानियत जीती रहे... और हर दिल में देश बसता। 🇮🇳

बी.डी ठाकोर

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"कर्ज़ और उसका सच"

कंधों पे बोझ था, लफ़्ज़ों में नहीं,
चुपचाप जिया, पर सुकून कहीं नहीं।
हर किस्त में सांसें टूटी थीं मेरी,
फिर भी मुस्कुराहट दी, तुझसे छुपा के ज़िंदगी।

कर्ज़ तो पैसा था, पर दर्द उसका भारी,
सच जब खुला, तू रोई — और मैं शर्म से गुमसारी।
न इरादा था धोखा देने का, न चाहा तुझे दुखी करना,
बस वक्त से लड़ते-लड़ते, खुद को भूल गया था चलना।

तेरे आंसू जले दिल की राख में,
पर तेरा साथ रहा अंधेरों की राह में।
तेरी चुप्पी में भी भरोसा था,
तेरी नज़रों में भी सवालों से ज़्यादा साया था।

अब भी है कर्ज़, पर अब मैं अकेला नहीं,
तेरा हाथ है साथ, तो रास्ता अंधेरा नहीं।
चुकाऊंगा सब कुछ, वादा है मेरा,
बस तेरा साथ ना छूटे, यही सहारा है मेरा।

_बी.डी.ठाकोर

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🌅 उम्मीद की आख़िरी किरण 🌅

भीड़ में खड़ा था मैं, पर खुद से खो गया,
आईनों में रोज़ देखा, मगर चेहरा खो गया।

बैंक के दरवाज़े, कर्ज़ के काग़ज़,
EMI की तारीख़ें, और वादों का बोझ।

हर शाम एक डर लाता है,
"कल फिर क्या होगा?" ये पूछ जाता है।

पर कहीं दिल के कोने में, एक चिंगारी है,
सारे अंधेरों के बीच भी, उम्मीद हमारी है।

माँ के हाथों की रोटी की ख़ुशबू है याद,
बच्चे की मुस्कान है, जैसे खुदा का संवाद।

ठोकरें लगीं हज़ार, मगर रुका नहीं,
टूटा हर सपना, पर झुका नहीं।

उधारी में सही, पर ज़िन्दा हूँ यारों,
उम्मीद का दीया आज भी जलता है बार-बार।

_बी.डी.ठाकोर

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💔 कर्ज़ की ज़ंजीर 💔

कभी था सपना, उड़ने का इरादा,
माँ-बाप की आंखों में, था एक वादा।

नौकरी मिली तो सोचा सब बदल जाएगा,
पर ज़माना कुछ और ही सिखाएगा।

कर्ज़ लिया था उम्मीदों के संग,
EMI बन गई अब दिल की जंग।

फोन की घंटियाँ डराने लगीं,
"पैसे दो!" आवाज़ें सताने लगीं।

रातों की नींद, दिन का सुकून,
सब छीन ले गया वो कर्ज़ का जुनून।

मगर ये कहानी यहीं खत्म नहीं,
अभी बाकी है लड़ाई, हार नहीं मानी कहीं।

एक दिन आएगा जब सब चुका दूँगा,
खुद को फिर से नया बना लूंगा।

_बी.डी.ठाकोर

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"शांति कैसे पाएं — आज के समय में"

"आज की दुनिया भागती जा रही है...
हर कोई कहीं पहुंचना चाहता है...
लेकिन क्या आपने कभी रुककर खुद से पूछा है!
'क्या मैं शांति में हूं?'

शांति, कोई चीज़ नहीं जो बाजार में मिले।
शांति — एक अनुभव है... एक एहसास है... जो अंदर से आता है।

"जब आप सुबह उठते ही फोन नहीं उठाते,
बल्कि अपनी साँसों को महसूस करते हैं...
वहीं से शांति की शुरुआत होती है।

"जब आप बीते कल को माफ कर देते हैं,
और आने वाले कल की चिंता छोड़ देते हैं —
तभी आप आज में जीना सीखते हैं।

"शांति तब आती है
जब हम दूसरों से नहीं,
खुद से जीतते हैं।

ध्यान करो…
मौन को अपनाओ…
और खुद से दोस्ती कर लो।

" क्योंकि सच्ची शांति बाहर नहीं
आपके भीतर है।

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"तू किसी से कम नहीं है।
अगर तुझे खुद पर भरोसा है,
तो दुनिया की कोई ताकत तुझे रोक नहीं सकती।
मेहनत कर,
खुद को साबित कर,
और वक्त को बता दे —
कि तुझमें भी आग है कुछ कर दिखाने की।
मुश्किलें आएंगी, लोग हसेंगे,
लेकिन तुझे रुकना नहीं है…
तुझे चलना है, तब तक…
जब तक तू अपनी मंज़िल को छू न ले।"

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“सात सूरजों की पुकार”

मैं खड़ा था एक अनजानी ज़मीं पर,
जहाँ न कोई नाम था, न कोई दिशा।
सात-आठ ग्रह थे मेरी नज़रों में,
हर एक का अपना सूरज, अपनी परिभाषा।

हर सूरज चमक रहा था अलग रंगों में,
कोई लाल, कोई नीला, कोई सुनहरा।
मानो हर जीवन, हर राह की कहानी,
अपनी धूप में छिपाए कोई गहरा ज़हरा।

पर चमक के पीछे कुछ धुंधला था,
जैसे कोई संकट, कोई छाया घिरी हो।
साफ़ नहीं था, पर अहसास था,
जैसे रौशनी खुद डर में डूबी हो।

मैं चुप था, पर मन बोल उठा,
“क्या ये मेरा सपना है या इशारा?”
क्या ये चेतावनी है समय से पहले,
या कोई भूली हुई पुरानी दुहाई प्यारा?

हर सूरज कह रहा था मुझे देखो,
मुझसे सीखो, पर आँख बचा लो।
क्योंकि जहाँ रौशनी होती है सबसे तेज़,
वहीं साया भी सबसे काला होता है, जान लो।

शब्दों के पीछे का भाव:
शायद ये सपना आपको ये बता रहा है कि ज़िंदगी के हर रास्ते में रौशनी तो है, लेकिन उसके पीछे छिपे खतरों को समझना जरूरी है। ये जागरूकता की पुकार है, डराने की नहीं।

_बी.डी.ठाकोर

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"अगर सब कुछ पहले से लिखा हुआ है, और वही होगा जो समय चाहेगा –
तो फिर सोचने और मेहनत करने का क्या फ़ायदा?"

✔️ सही बात है।
लेकिन ज़रा एक बार इस तरह से सोचिए:

🔥 1. मेहनत आपको बदलती है, दुनिया को नहीं तो भी खुद को ज़रूर।

नतीजा चाहे जो भी हो,
आपका सफर, आपकी सीख, आपकी हिम्मत — सब कुछ आपको नया बनाता है।

जैसे:

अगर एक बीज ज़मीन में बोया जाए, और वो पेड़ न भी बन पाए,
तब भी वो ज़मीन को कुछ न कुछ दे ही जाता है — जैसे मिट्टी की नमी, गुणवत्ता, और एक कहानी।

🌱 2. आप नतीजे के लिए नहीं, अपने अस्तित्व के लिए मेहनत करते हो।

कर्म योग कहता है:

"कर्म करो, फल की चिंता मत करो।"
यानी मेहनत करो क्योंकि वही तुम्हारा धर्म है,
फल मिलेगा या नहीं — वो भाग्य का खेल है।

🔁 3. नतीजा वही हो सकता है, लेकिन उस तक पहुँचने का रास्ता आपके हाथ में होता है।

अगर आप बिना मेहनत के वही नतीजा पा भी लो,
तो वो आपको अंदर से मज़बूत नहीं बनाता।

लेकिन जब आप मेहनत से उस नतीजे तक पहुँचते हो,
तो आपके पास आत्मविश्वास होता है, अनुभव होता है और अपनी एक कहानी होती है।

📚 एक छोटी सी कहानी:

एक बार एक छात्र ने गुरुजी से पूछा:

"गुरुजी, अगर सब कुछ भाग्य में लिखा है, तो पढ़ाई क्यों करें?"

गुरुजी मुस्कराए और बोले:

"बेटा, ये भी लिखा है कि अगर पढ़ोगे, तभी पास हो पाओगे "

🧭 अंत में:

"सोचना और मेहनत करना कभी मत छोड़ो,
क्योंकि अगर तुम रुक गए —
तो शायद समय भी तुम्हारे लिए रुक जाएगा।"

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