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"अगर सब कुछ पहले से लिखा हुआ है, और वही होगा जो समय चाहेगा – तो फिर सोचने और मेहनत करने का क्या फ़ायदा?" ✔️ सही बात है। लेकिन ज़रा एक बार इस तरह से सोचिए: 🔥 1. मेहनत आपको बदलती है, दुनिया को नहीं तो भी खुद को ज़रूर। नतीजा चाहे जो भी हो, आपका सफर, आपकी सीख, आपकी हिम्मत — सब कुछ आपको नया बनाता है। जैसे: अगर एक बीज ज़मीन में बोया जाए, और वो पेड़ न भी बन पाए, तब भी वो ज़मीन को कुछ न कुछ दे ही जाता है — जैसे मिट्टी की नमी, गुणवत्ता, और एक कहानी। 🌱 2. आप नतीजे के लिए नहीं, अपने अस्तित्व के लिए मेहनत करते हो। कर्म योग कहता है: "कर्म करो, फल की चिंता मत करो।" यानी मेहनत करो क्योंकि वही तुम्हारा धर्म है, फल मिलेगा या नहीं — वो भाग्य का खेल है। 🔁 3. नतीजा वही हो सकता है, लेकिन उस तक पहुँचने का रास्ता आपके हाथ में होता है। अगर आप बिना मेहनत के वही नतीजा पा भी लो, तो वो आपको अंदर से मज़बूत नहीं बनाता। लेकिन जब आप मेहनत से उस नतीजे तक पहुँचते हो, तो आपके पास आत्मविश्वास होता है, अनुभव होता है और अपनी एक कहानी होती है। 📚 एक छोटी सी कहानी: एक बार एक छात्र ने गुरुजी से पूछा: "गुरुजी, अगर सब कुछ भाग्य में लिखा है, तो पढ़ाई क्यों करें?" गुरुजी मुस्कराए और बोले: "बेटा, ये भी लिखा है कि अगर पढ़ोगे, तभी पास हो पाओगे " 🧭 अंत में: "सोचना और मेहनत करना कभी मत छोड़ो, क्योंकि अगर तुम रुक गए — तो शायद समय भी तुम्हारे लिए रुक जाएगा।"
"वो सपने… जो हमने कभी सोचे ही नहीं" कुछ सपने... अजीब होते हैं। ना उनका चेहरा जाना-पहचाना होता है, ना वो कहानी जो हमने कभी जानी हो।" "हमने न कभी वैसा सोचा, न कभी महसूस किया — फिर भी वो आते हैं... चुपचाप… अचानक… बिना दस्तक दिए।" "तो सवाल उठता है — ये सपने आते कहाँ से हैं?" "शायद ये हमारे दिमाग की कोई छुपी हुई गली से आते हैं, जहाँ बचपन की कोई भूली तस्वीर पड़ी हो। या फिर किसी और जीवन की कहानी… जो हमने कभी जिया ही नहीं।" "शायद... ये कल्पना और यादों का मिलाजुला रंग है। या फिर कुदरत का कोई गुप्त संदेश, जो बस हमारे सो जाने पर सुनाई देता है।" "हर सपना कुछ कहता है — चाहे वो जाना-पहचाना हो… या बिलकुल अनजान। उसमें कोई न कोई हिस्सा तुम्हारा ही होता है, जिसे तुम अब तक पहचान नहीं पाए।" ✨ "तो जब अगली बार कोई अजीब सपना आए — डरना मत... शायद वो तुम्हारा नहीं, पर तुम्हारे अंदर का ही एक हिस्सा हो!" _बी.डी.ठाकोर.
"मैं कुछ ऐसा जानता हूँ... जो शायद कोई नहीं जानता।" "ना किताबों में लिखा है, ना किसी पुराने पन्ने पर धूल चढ़ा है..." "वो न कोई सपना था, न हकीकत की रेखा... बस एक पल था… जो मेरे अंदर बीत गया, बिना किसी आवाज़ के..." "मैं जानता हूँ उन सन्नाटों की जुबान, जिन्हें कोई सुन नहीं सकता। मैंने देखा है रंग अंधेरों में, जहाँ रोशनी भी थककर रुक जाती है।" "मेरे पास एक ऐसा सच है, जो किसी सवाल का जवाब नहीं, बल्कि खुद एक सवाल है… जिसे पूछने की हिम्मत सबके पास नहीं।" "मैं कुछ ऐसा जानता हूँ… जो मेरी आंखों में तो तैरता है, पर जुबान तक आते ही रुक जाता है। क्योंकि हर सच… कहा नहीं जाता।" "मैं कुछ ऐसा जानता हूँ... और शायद अब उस सच को कविता बनाना ही ठीक होगा।" "क्योंकि कभी-कभी, एक अधूरी बात... सबसे पूरी होती है।" _बी.डी.ठाकोर.
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