आम इंसान की तो पुरातन काल मे भी नही चलती थी
मेहनत और संघर्ष के बल पर ही उसकी दुनिया पलती थी...
कभी असुरों के हाथ निपट गए
कभी ऋषियों के शाप का निवाला बन गए...
जिंदगी आज भी रंग बदलती है
जिंदगी तब भी रूप बदलती थी...
ईश्वर ने श्रीराम श्रीकृष्ण के मानवतार भले लिए
पर भगवानीयत हमेशा उनके साथ ही चलती थी...
वरना साधारण मानव को कहाँ नसीब इंद्र का रथ
उसे भला कहाँ मिलेंगे हनुमान से भक्त ...
दुर्योधन ने जब कृष्ण को बंदी बनाने आगे कदम बढ़ाया
तब तुरन्त ईश्वर ने विश्वरूप दिखलाया...
जिनके आगे एक बार बोलने को पूरी दुनिया तरसती थी
अंत मे विजय उन्हीं निराकार की तो होती थी...
मित्र सुदामा से मित्रता का अनूठा बन्धन बाद में भले प्रभु ने निभाया
पर पहले एक मुट्ठी चने का मूल्य उस ब्राह्ममण ने भी तो सारी उम्र संघर्ष कर चुकाया...
सत्ता के लिए युद्ध तो तब भी होते थे
भला कौनसा अवतार उन्हें रोक पाया...
अंत मे...
ईश्वर के गुण कहाँ मानवों में आ पायंगे
कितने राम पिता के वचनों की लाज रख पाएंगे?????
कितने कृष्ण अपने माता पिता के अपमान का बदला ले पाएंगे?????
कितने केशव द्रौपदी की लाज बचा पाएंगे?????
साधारण मानव तो अंत मे कर्मों की गति पर ही निर्भर रह जाएंगे
उसका परिणाम तो सिर्फ ईश्वर ही घोषित कर पाएंगे...👍
अतुल कुमार शर्मा