कोई गर बात मैं कह दूं, तुझको बतंगड़ लगती है
कोई जस्बात गर छेडूं, तुझको नौटंकी लगती है
कोई वाक्या सुनाऊं तो, तुझे अफसाना लगता है
तेरी तारीफ़ गर कर दूं, तुझे साज़िश सी लगती है।
सलीके जीने के सारे, तुझी को तो हैं आते
मेरी गिनती गवारों में, तेरे विद्वानों से नाते
बोलने पे जो तू आती, कसम से कहर ढा जाती
जुबां होते हुए भी हम, सहम के बोल ना पाते।
मुझे तू आग लगती है, तुझे लगता हूं मैं पानी
छुरी और खरबूजे जैसी ,है तेरी मेरी ये कहानी
शिकायत करता हूं मै पर, पता है तुझको दीवानी
धड़कनों मैं तू है बसती, तू मेरी है जिंदगानी।
-Satish Malviya