हालत कुछ ऐसी हे की बया नही हो रही,
न कोई गम है न कोई आनंद है,
फिर भी महसूस हो रहा कुछ कमी सी है।
पता नही किस कश्मकश में उलझे है,
क्यू रोए उस पिद्दी सी चीज के लिए,
जो आखिर में तो व्यर्थ ही है।
कभी जो झूमकर खो जाना चाहा,
तो कुछ कमी सी उभर जाती,
कहती मुझे पहले कुछ हासिल तो करले।
टूटना था तो टूट नही पाए,
जुड़ना था पर जुड नही पाए,
आखरी सास तक समझ नही पाए।
की हासिल करे भी तो क्या करे,
क्यू व्यर्थ में दर्द झेले ढोए,
अंत में कुछ भी नही है।
जानते है की बैठना है शांति से,
पर कर न पाए, जानते हो क्यू?
बंधे हुए थे बेमतलब की जिम्मेदारियों से।
कोई कहता की मत सोचो ज्यादा,
पर कैसे कही जाए वो बात उन्हें की,
बिना मंथन के अमृत कहा।
©Kalpesh Jayswal (7th April 2021)