में धूप में तप कर किसी प्यास बुझाने की मसक्कत करता रहा।
वो पैसे वाला बाबू जेब हाथ रखकर मेरी गरीबी कोई रुस्वा करता रहा।
हो सकता है मेरी पसीने कीमत कम हो पर इसका मतलब ये नही की
मेरी की मेरी मेहनत की इज़्ज़त कम हो।
में दो वक्त की रोटी के लिए चारो पहर जलता हूँ,
सुबह से लेकर शाम तक नंगे पैर चलता हूँ।
आपके तो पेर भी मुश्किल से मैले होते है।
हम तो भरे बाजार में भी तपती धूप में अकेले होते हैं।
#SAHILSAGAR