#पीड़ा
मन की पीड़ा जो कह पाती,
ऐ पीड़ा तुम न होती साथी,
न डूबती उतरती तुम्हारे सागर मे,
जो तुम मेरे लब तक चली आती।
दोष तुम्हारा भी नही पाती,
विधि का लिखा कैसे मैं टाल पाती,
गर तुम ना होती मेरी साथी,
मैं तो दुनिया मे तन्हा रह जाती।
अब तो दिल मे समा गई हो,
तभी तो मुझे तुम भा गई हो
तुम तो निर्मम जीवन का उपहार हो,
तब ही तो तुम मुझे पा गई हो।