बचपन में माता-पिता हमारी उंगलियों को अपनी उंगलियों से थामकर हमें संभालते हैं, चलना सिखलाते हैं। तो हमारा भी यह कर्तव्य है कि जब तक माता-पिता की साँसें शेष है तब तक हम भी उनके सहारे की छड़ी बनकर उनके डगमगाते कदम को संभालें, उनका ख़्याल रखें।
-कुमार संदीप