ये केसा ज़िन्दगी हे समझ नहीं आता।
जो बात हमने पुराणों और बेदों मे पढ़े हे वो बात आजकी लोगों मे नहीं दीख रहा हे। और जो बात दीख रहा हे वो सायेद कहीं नहीं मिलेगा। अच्छा बनना और अच्छा बात करने का ज़माने सायेद इस युग मे नेहीं मिलेगा। यहाँ सब अपने अपने बिचार धारा मे जी रहे हे। और बिचार तो ऐसा होगया हे की जो गुटखा बेचेगा वो ही कैंसर हॉस्पिटल खोलेगा। लोग लाख मे रोज़गार करते हे फिर भी चाहिए और उधार बढ़ता जा रहा हे। और एक गरीब जो सिर्फ 2वक़्त रोटी खारहा हे उसका उधार नेहीं फिर भी वो गरीब केहेलरहा हे। लोग दुनिआ को अमीर के नज़रूँ से देख रहें हे। हजार हजार करोड़ का मालिक के पास वक़्त नेहीं हे बाते करने की ओर कुच्छ लोग उस नफुर्सत ब्यक्ति के साथ नाता जोड़ ने की सोच रहें हे। जो परिबार का ख्याल रखता हे वाद मे वो परिबार उसे छोड़ देनेकी धमकी देता हे। भलेही अनपढ़ हे कुच्छ लोग लेकीन वो अपनों का मतलब समझ ते हे और पढ़े लिखें लोग अपनों के मत के बाद मे भी नहीं आते हे। फिर भी उनको हमारा समाज बड़ा कहलाता हे। जो लोग जिंदगी को entertainment समझ ते हे ये जिंदगी उनको एक दिन खिलौना की तहरा entertainment केलिए ब्यबहार करेगा। एक दिन सबके पास पैसा तो बहत होगा लेकीन फिर भी ज़िन्दगी मे खुशी, बिस्वास, भौंरासा, प्रेम, आनद ना होने की वजेसे रेग्गिस्तान जैसा लगे गा। क्या कहूंगा मे शब्द नहीं आ रहा हे, ये ज़िन्दगी ने मुझे इतना सिखाया हे की कहीं से सीख नेकी नोबॉट नहीं हे। रिश्तों के ब्यापार ओर रिश्तेदारों के ब्यबहार ने हमें दूकान जैसा करलिए हे। भलेही दिखावे का स्नेह देतें हे लोग, बदले मे चाहते हे वो अपने स्वार्थ के भोग। जो प्यार करते हैं वो अक्सर अपनी प्रेमी के पॉकेट देकते हैं और प्रेमिका के चहरे के सुंदरता। बहत कम लोग दिल से प्यार करते हैं बाकी सारे शरीर और धन से।
जय जगन्नाथ
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स्वस्थ रहें, प्यार बांटें। रिश्ते और रिश्तेदारों को उतने अहमियत दीजिए जितना अप्प पाते हैं। अपने अपको इतना बजबूत बनाइये के किसी वी आंधी ओर तूफान से अप्प ना बिखरें।