कांटे तो हमें रोज़ चुबते हें लेकीन दर्द दिन ब दिन कम होता हे। क्यूंकि हमने अपने दिल और दिमाक को इसका आदत बना चुके हें। ये जिंदगी का रहा हे दोस्तों कांटे तो बहत आएंगे कभी रिश्तों के आड़ मे कभी अपनों के दहाड़ मे या कभी कभी औरों के ब्यबहार मे बास हमें तैयार रखना हे अपने दिलो, दिमाक मे। क्यूंकि एक फलता हुआ पेड़ ही अधिक चोट और आघात झेलता हे। इसलिय कस्ट आये तो खुद को याद दिला देना के मे एक फलता हुए पेड़ हूँ, जो लोग मुझे आघात देतें हें उनके पास मेरा कमी हे इसलिय वो मुझसे मेरा फल जाहते हें उनकी कम्मी को वारपाइ करने कलिये।
जय जगन्नाथ
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