Hindi Quote in Poem by दिपेश कामडी अनीस

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घर

बचपन का खेल
बचपन का ख्वाब
एक अपना घर हो।
घर से दूर जाऊँ
मेरा बड़ा काम हो।
बड़ा नाम कमाऊं।
जग में नाम हो।
घर हर दिन चहल पहल हो।
छोटा सा घर धीरे धीरे महल हो।
घर में बीबी हो और बच्चा हो।
घर में प्रेम हो और सच्चा हो।
घर में रोज महेमान का आना हो।
घर में रोज अच्छा खाना हो।
घर में रोज रोज प्यार करने का बहाना हो।

बचपन का खेल
समय की रेल।
स्मृतियों को रहा पीछे धकेल।
घर की छत उड़ गई।
नीचे की जमीन उखड गई।
दीवालें गिर गई।
घर बिखर गया।
घर खाली-खाली, सूना-सूना।
सुनाई नहीं देता हँसना।
न चहचहाना, न किसीका बोलना।
न किसी का आना।
न कहीं बाहर जाना।
सुनाई देता
रह रहकर जोर से चिल्लाना ।
फूटफूट कर रोना।
घर अब दे रहा है ताना।

-दीपेश कामडी 'अनीस'

Hindi Poem by दिपेश कामडी अनीस : 111600440
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