तड़पन
पुकार कर तेरा यु वापस लोट जाना
जेसे बहेती नदियों का रुख़ बदलना..
आवाज़ देती रही हवाएं
नदी के हर एक अल्फाज़ो को ..
मगर
ज़मीन चुप थीं
आसमान चुप था
चुप रहा वो अंधेरा
बोला कहाँ जाऊँगा,
यही रहुँगा
इतिहास के उस पन्नों की तरह..
जो आज़ाद होते हुवे भी बिखरा हैं पत्तों की तरह..
होने दो जो क्षण चाहें
होने दो जो होता रहे..
पहाड़ो के बीच से गुज़रती ये नदियाँ..
ढूंढ ही लेगी उपनी उपमा ।
- Divya shinde
My second poem in hindi