यकीन' नहीं, तो कुछ नहीं..
मानो बातों में अल्फाज़ नहीं,
अल्फाज़ों में एहसास नहीं,
सावन में बरसात नहीं,
वसंत में उल्लास नहीं,
हवा में महक नहीं,
भोर में चहक नहीं,
पानी में लहर नहीं,
रात के बाद सहर नहीं,
ऐसे ही..
'साथ' वो आता रास नहीं,
गर रिश्ते में "विश्वास" नहीं ।