ज़िंदगी की तपती गर्म रेत सी राहों में
कभी बिखरी कभी टूटी
कभी बिखरकर टूटती
मेरी अनगिनत चाहों में
न जाने कितनी बार लौटना चाहा
तेरी पनाहों में
मगर हर बार जकड़ लिया मुझपर पड़ती
मेरी जिम्मेदारियों की पैनी निगाहों ने
चाहकर भी न लौट सकी मैं कभी तेरे
प्यार की छाँव में ...
-NISHA SHARMA ‘YATHARTH’