उन नामर्दो की कायरता से शर्मसार है पूरी मानवजात,
तुम्हारी एक-एक चीख की कल्पना से नम है ये अखियां।
हम सब शर्मिंदा है बिटियां...!!
तुम्हारे लहु का कतरा-कतरा बारबार हमसे ये पूछ रहा है,
मैं लाचार थी, लेकिन क्या आपने भी पहेन रखी है बेड़िया ?
हम सब शर्मिंदा है बिटियां...!!
न जाने तुम कितनी तड़पी होगी, कितनी गिड़गिड़ाई होगी,
तुम्हारी इस बर्बर बेबसी को याद रखेगी आनेवाली पीढ़िया।
हम सब शर्मिंदा है बिटियां...!!
वो बेगुनाह हजार बार प्रश्न करेगी सत्ता के साहूकारो से,
मिटाने को मेरा अस्तित्व क्या कम पड़ गयी लकड़िया ?
हम सब शर्मिंदा है बिटियां...!!
तु ना आना इस देश मेरी लाड़ो...!!
लेखक :- बादल सोलंकी