है चाहत मेरी
मिल जाते पंख अगर
उड जाती इतना दूर मैं
घुल जाती फिर हवाओं में
बनकर जैसे कोई एहसास मैं
छूकर गुजर जाती
पर न आती कभी हाथ मैं
खोल कर पंख फिर अपने
चिडियों की तरह गुनगुनाती मैं
कह देती अपने दर्द सारे अगर
फिर भी किसी को समझ न आती मैं
फिर उडते बादलों के जैसे
बना लेती आसमान में जगह
दिल गर भर भी जाता तो
बरस जाती बारिश के जैसे मैं
-Pooja Bhardwaj