माटी के पुल
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माटी के पुल टूट गये सब
उजड़ गये जो तगड़े थे |
नई पतंगें लिए हाथ में
घूम रहे थे कुछ बच्चे
ज्यादा भीड़ उन्हीं की थी,
थे जिन पर मांझे कच्चे
दौड़ रहे थे दौड़ें लम्बी
छूट गये जो लँगड़े थे ||
महँगी गेंद नहीं होती है,
होता खेल बड़ा मँहगा
पाला-पोसा मगन रही माँ
नहीं मंगा पायी लहँगा
थे हल्दी,कुमकुम अक्षत सब
पैसे के बिन झगड़े थे ||
छाया-धूप दिखाई गिन-गिन
लिए-लिए घूमे गमले
आँगन से निकली पगडंडी
कभी नहीं बैठे दम ले
गैरज़रूरी बने काम सब
चाहत वाले बिगड़े थे ||
-कल्पना मनोरमा
23.08 .2020