बंद आंखों से क्यों जागते हो
खुली आंखों से क्यों सोते हो
भूखों की रोटी क्यों खाते हो
बंद कमरों में क्यों दौड़ते हो
जब इंसा हो तो शैंता क्यों बन जाते हो
इश्क़ की दरिया में अकेले क्यों तैरते हो
सपनों की दुनिया में इतना क्या सोचते हो
चाभी है पास में तो घर क्यों नहीं लौटते हो
आसमां की बारिश में क्यों नहीं भींगते हो
जब इंसा हो तो शैंता क्यों बन जाते हो
समस्या के समाधान में बाधा क्यों बनते हो
उड़ती हुई पतंग से आग क्यों लगाते हो
नदी के बीच में पतवार क्यों छीनते हो
राहत के इस दौर में शोर क्यों करते हो
जब इंसा हो तो शैंता क्यों बन जाते हो